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हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए |
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
- दुष्यंत
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26 Dec 2012
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too good poem .......thnx for sharing sir |
but i m confused between Dushyant or Harivansh rai bachan?????
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26 Dec 2012
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ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ.......tfs......
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26 Dec 2012
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