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मैंने यह क्यों नहीं देखा |
मैं करता रहा तुमसे प्रेम लिखता रहा तुम्हारी सुंदरता के गीत डूबा रहा मिलन के आमोद में या फिर जलता रहा विरह में पर सुनो ! मैंने यह क्यों नहीं देखा कि तुम्हें कहीं भी बराबरी का हक़ हासिल नहीं है एक डर तुम्हारे सपनों में भी होता है बात बात में अम्बर पर बस्तियां बनाने वाला मैं नहीं कर सका जमीन का एक टुकड़ा तुम्हारे रहने लायक जहाँ रह सको तुम अपनी मर्ज़ी से बिना किसी का मुँह ताके और कह सको प्रेम को प्रेम बिना किसी बहाने के, तब शायद तुम्हे भी यह धरती छोड़ चाँद सितारों के ख़याल से खुद को न बहलाना पड़ता ।
- आनंद
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06 Jan 2013
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