Punjabi Poetry
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komaldeep kaur
komaldeep
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ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਕੀ ਕਵਿਤਰੀ

मेरे अन्दर की कवियत्री ..............

शब्दों के पंख लगा सृजन के आकाश में उड़ना चाहती है

साहित्य के शामियाने में चंद नगीने जड़ना चाहती है

गलीसड़ी रिवायतो से अपनी कलम से लड़ना चाहती है

मेरे अन्दर की कवियत्री ..............

सुना सकती है कविता जेठ दोपहर सी लम्बी जुदाई की

गुनगुना सकती है नज़्म उस बन्दा परवर की खुदाई की

लिख सकती है ग़ज़ल इस सुरसा सी मुंह खोलती महंगाई की

मेरे अन्दर की कवियत्री ..............

इश्क की बातें ,मिलन की रातें

देश की निति, दहेज़ कुरीति

कब हुए जुदा ,कहाँ मिला खुदा

सब लिख सकती है......

मगर डरती है मेरे अन्दर की औरत

यहाँ हर बात के सौ अर्थ माने जायेंगे

भाव उसके दिमाग नही देह से जाने जायेंगे

शब्द उसके भोहों के कटाव से पहचाने जायेंगे

विकृति के कीड़े हर नज़्म ,ग़ज़ल को खायेंगे

कविता को मेरी सूरत से और एहसास को नाम से जोड़ेंगे

पूजने वाले हाथ ही मूरत टुकड़ा टुकड़ा तोड़ेंगे

डरती है मेरे अन्दर की औरत

और उसके साथ ही मरती है

मेरे अन्दर की कवित्री....जो

शब्दों के पंख लगा सृजन के आकाश में उड़ना चाहती है.....कोमलदीप

 

15 Apr 2015

JAGJIT SINGH JAGGI
JAGJIT SINGH
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कोमल जी, शत शत नमन, शास्त्री जी |
अति सुंदर, सशक्त एवं भावुक रचना ! 
मैं अचम्भित हूँ और प्रभावित भी हुआ हूँ यह देख कर, कि आम/सामान्य जन धारणा के विपरीत, पंजाब मैं बैठी एक लेखिका की  हिंदी पर इतनी अच्छी पकड़ है | और इस में कोई दो राय नहीं कि रचना तो बढ़िया है ही !
वैसे गुरु गोबिंद सिंह जी से यही सीखने की आवश्यकता है कि  भाषा किसी राष्ट्र अथवा जाति विशेष की सम्पति नहीं होती - जितना सीख सकें उतना ही बढ़िया | गुरु साहिब द्वारा रचित साहित्य में भाषाई विविधता के दर्शन करने से पता चलता है कि विभिन्न भाषाओं पर कैसी मजबूत पकड़ थी उनकी | तभी तो ज़फ़रनामा (जो गुरु गोबिंद सिंह साहिब के द्वारा विशुद्ध फ़ारसी भाषा में कविता रूप में रचित था) पढ़ कर औरंगज़ेब दंग रह गया था, और उनसे मिलने कि इच्छा ज़ाहिर की थी - (वो बात अलग है) जो कभी हो नहीं पाया | 
शेयर करने हेतु धन्यवाद !

  

कोमल जी, शत शत नमन, शास्त्री जी |


अति सुंदर, सशक्त एवं भावुक रचना ! 


मैं अचम्भित हूँ और प्रभावित भी हुआ हूँ यह देख कर, कि आम/सामान्य जन धारणा के विपरीत, पंजाब मैं बैठी एक लेखिका की  हिंदी पर इतनी अच्छी पकड़ है | और इस में कोई दो राय नहीं कि रचना तो बढ़िया है ही !


वैसे गुरु गोबिंद सिंह जी से यही सीखने की आवश्यकता है कि  भाषा किसी राष्ट्र अथवा जाति विशेष की सम्पति नहीं होती - जितना सीख सकें उतना ही बढ़िया | गुरु साहिब द्वारा रचित साहित्य में भाषाई विविधता के दर्शन करने से पता चलता है कि विभिन्न भाषाओं पर कैसी मजबूत पकड़ थी उनकी | तभी तो ज़फ़रनामा (जो गुरु गोबिंद सिंह साहिब के द्वारा विशुद्ध फ़ारसी भाषा में कविता रूप में रचित था) पढ़ कर औरंगज़ेब दंग रह गया था, और उनसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की थी - (वो बात अलग है) जो कभी हो नहीं पाया | 


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15 Apr 2015

komaldeep kaur
komaldeep
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धन्यवाद
सर आपके सराहना के शब्द इतने बड़े की मेरी कविता छोटी हो गई।thaaaaaaanx......आपके गुरु साहिब के बारे में दी जानकारी के लिए शुक्रिया।आशा है आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
15 Apr 2015

Sandeep Sharma
Sandeep
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Bahut sundar Komaldeep g, aur Jagjit Sir ne is kavita ke uplaksh me bilkul sach likha hai.

Thanks for sharing.
15 Apr 2015

SANJEEV SHARMA
SANJEEV
Posts: 456
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Joined: 06/Jan/2014
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Very nice .....
15 Apr 2015

ਮਾਵੀ ƸӜƷ •♥•.¸¸.•♥•.
ਮਾਵੀ
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बहुत खूब!!

कश म कश एक अहसास को अल्फाज़ तक लाने की।

Great job done komal ji
15 Apr 2015

komaldeep kaur
komaldeep
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thaaanx sandeep,sanjeev and Mavvi ji

15 Apr 2015

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