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| मुक्ति |
------- वो बाल जो मैंने इसलिए बड़े किए थे , कि तेरे गाव के लड़के ...
मुझे काली मेम कह कर न छेड़े , बाल काटने वाली चीनी लड़की ने फिर छोटे काट दिए है |
न पहने रेशमी सूटो को अलमारी के अँधेरे कोने में पतलूनो के पीछे धकेल दिया है | तेरा अधूरा स्वेटर सलाइओ समेत दूर रख कर ऊँगलिया टाईप रायटर से ब्याही गयी है |
बाथरूम में से सिगरिटो का पैकट निकाल और कॉफ़ी हॉउस में धुँआ छोड़ कर मुझे लगता है तेरे इलावा और भी मर्द हैं |
________________ निरुपमा दत्त (ये कविता पंजाबी से हिंदी में अनूदित कि गयी है )
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31 Oct 2012
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very nycc......tfs.......
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01 Nov 2012
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