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हथियार - प्रेम |
तलवारें खनक रहीं है , बरसों से मेरे दिल की देहरी पर , तुमने दिल नहीं दिया , मैंने सर , कुंद होकर थकी तलवारें , आँख मार रहीं हैं एक दूसरी को , हम ढूंढ़ रहें हैं , नये हथियार नये प्रेम क़त्ल करने को .
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फरमान है , अब प्यार मिलेगा राशन के डीपू पर , पांच के परिवार को चार किलो , मैं अकेला हूँ , हिसाब में कमज़ोर भी , डरता हूँ अपने हिस्से आते , बड़े से अभाव से .
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नौउमरी में चेहरे पर , मुहांसों सा निकला तुम्हारा प्यार , चेचक के गढ़ढ़ों सा हो गया है , उम्र के आईने में , अपनी शकल देखते हुए , तुम्हारे चेहरे की कामना में गुम, सबके साथ ऐसा ही हुआ ,या मेरी जीजिविषा ज्यादा कम थी, प्यार अधिक .
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जाती सर्दियों के यह दिन , बीवियां समेट रहीं हैं , पतियों के जाकेट ,कोट पेंट और टाईयां , फिनायल की गोलियों के साथ , खा नहीं जाएँ कीड़े कहीं इन्हें भी , दीमक लगे इन पुरुषों की ही तरह, हँसते हैं प्रेम में डूबे पुरुष , अगली सर्दियों के ख्याल को सूंघ , कहते भी हैं खुद से , हाँ ! रहूँगा मैं अगली सर्दियों में भी , इन कपड़ों को पहनने के लिए तो ज़रूर .
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प्रेम करामाती सुरमा है , इसे लगाते ही घोड़ों को घास हरी लगती है , घास को घोड़े जवान , मैं लगभग तट्स्थ हूँ आजकल लगभग , और चाहता हूँ , यह सुरमा लग जाए सबकी आँखों में सच ! हर रंग होगा इस दुनिया में तब |
_______ Deepak Arora
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15 Dec 2012
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