नए कपड़े पहन कर जाऊ कहाँ और बाल बनाऊ किसके लिए वो सख्श तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऊ किसके लिए वो शहर में था तो उसके लिए गैरों से भी मिलना पड़ता था अब ऐरे गैरे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किसके लिए मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी इस घर की फिजां इन खाली खाली कमरों में मैं शमां जलाऊँ किसके लिए जिस धूप की दिल में ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई अब जलती वलती गलीओं में मैं खाक उडाऊं किसके लिए